भारतीय नारी पर निबंध || Bhartiya Nari Par Nibandh In Hindi

Bhartiya Nari Par Nibandh: तो दोस्तों अगर आप एक स्टूडेंट हो तो आपकी आने वाली कोई सी भी एग्जाम में निबंध तो जरूर पूछे जाते हैं और उसके टॉपिक कई प्रकार के या फिर अलग-अलग हो सकते हैं उसमें से एक टोपी किया भी है भारतीय समाज में नारी का स्थान क्या है या फिर नारी के ऊपर निबंध लिखिए इस तरह के टॉपिक्स अगर आपकी एग्जाम में आए तो आप उन पर निबंध लिख सकते हो मगर आपने उस टॉपिक पर निबंध पढ़ा होगा तभी लिख पाओगे। Bhartiya Nari Par Nibandh

भारतीय नारी पर निबंध || Bhartiya Nari Par Nibandh In Hindi
भारतीय नारी पर निबंध || Bhartiya Nari Par Nibandh In Hindi

हमने स्टूडेंट आप लोगों के लिए यहां पर बहुत सारे ऐसे टॉपिक्स पर निबंध कवर करें हैं जो कि एक स्टूडेंट के लिए काफी हेल्पफुल साबित हो सकते हैं।

तो हमने यहां पर हमारे हिंदुस्तान की नारी के बारे में लिखा है कि नारी का क्या स्थान है नारी क्या-क्या कर सकती है और हमारे समाज में नारी का क्या स्थान है इस टॉपिक्स पर हमने पूरी तरीके से कवर करके लिखा है नारी के बारे में तो आप नीचे जाकर पड़ी है और निबंध को याद कर लीजिए ताकि आपके आने वाले एग्जाम सुने आप लिख पाऊं और कुछ अंक निश्चित कर पाओ।

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  • भारतीय समाज में नारी का स्थान
  • अथवा
  • नारी है तो कल है 
  • अथवा
  • भारतीय नारी पर निबंध
  • ” नारी तुम केवल श्रद्धा हो , विश्वास रजत पग – पग तल में ।
  • पीयूष स्त्रोत सी बहा करो , जीवन के सुन्दर समतल में ॥”

Bhartiya Nari Par Nibandh Class 1-12Th

विस्तृत रूपरेखा- 

  • ( 1 ) प्रस्तावना , 
  • ( 2 ) प्राचीन भारतीय नारी , 
  • ( 3 ) मध्यकाल में नारी , 
  • ( 4 ) आधुनिक नारी , 
  • ( 5 ) उपसंहार ।

प्रस्तावना – सृष्टि के आदिकाल से ही नारी की महत्ता अक्षुण्ण है । नारी सृजन की पूर्णता है । उसके अभाव में मानवता के विकास की कल्पना असम्भव है । समाज के रचना – विधान में नारी के माँ , प्रेयसी , पुत्री एवं पत्नी अनेक रूप हैं । वह सम परिस्थितियों में देवी है , तो विषम परिस्थितियों में दुर्गा भवानी । वह समाज रूपी गाड़ी का एक पहिया है जिसके बिना समग्र जीवन ही पंगु है । सृष्टि चक्र में स्त्री – पुरुष एक – दूसरे के पूरक हैं । 

मानव जाति के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो ज्ञात होगा कि जीवन में कौटुम्बिक , सामाजिक , राजनीतिक , आर्थिक , साहित्यिक , धार्मिक सभी क्षेत्रों में प्रारम्भ से ही नारी की अपेक्षा पुरुष का आधिपत्य रहा है । पुरुष ने अपनी इस श्रेष्ठता और शक्ति – सम्पन्नता का लाभ उठाकर स्त्री जाति पर मनमाने अत्याचार किये हैं । उसने नारी की स्वतन्त्रता का अपहरण कर उसे पराधीन बना दिया । सहयोगिनी या सहचरी के स्थान पर उसे अनुचरी बना दिया और स्वयं उसका पति , स्वामी , नाथ , पथ – प्रदर्शक और साक्षात् ईश्वर बन गया । 

प्राचीन भारतीय नारी – प्राचीन भारतीय समाज में नारी – जीवन के स्वरूप की व्याख्या करें तो हमें ज्ञात होगा कि वैदिक काल में नारी को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था । वह सामाजिक , धार्मिक और आध्यात्मिक सभी क्षेत्रों में पुरुष के साथ मिलकर कार्य करती थी । रोमा और लोपामुद्रा आदि अनेक नारियों ने ऋग्वेद के सूत्रों की रचना की थी । रामायण काल ( त्रेता ) में भी नारी की महत्ता अक्षुण्ण रही । रानी कैकेयी ने राजा दशरथ के साथ युद्ध – भूमि में जाकर उनकी सहायता की । इस युग में सीता , अनुसुइया एवं सुलोचना आदि आदर्श नारी हुईं । महाभारत काल ( द्वापर ) में नारी पारिवारिक , सामाजिक एवं राजनीतिक गतिविधियों में पुरुष के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने लगीं । इस युग में नारी समस्त गतिविधियों के संचालन की केन्द्र बिन्दु थी । द्रोपदी , गान्धारी और कुन्ती इस युग की शक्ति थीं । 

मध्यकाल में नारी – मध्य युग तक आते – आते नारी की सामाजिक स्थिति दयनीय बन गयी । भगवान बुद्ध द्वारा नारी को सम्मान दिये जाने पर भी भारतीय समाज में नारी के गौरव का ह्रास होने लगा था । फिर भी वह पुरुष के समान ही सामाजिक कार्यों में भाग लेती थी । सहभागिनी और समानाधिकारिणी का उसका रूप पूरी तरह लुप्त नहीं हो पाया था ।

मध्यकाल में शासकों की काम – लोलुप दृष्टि से नारी को बचाने के लिए प्रयत्न किये जाने लगे । परिणामस्वरूप उसका अस्तित्व घर की चहारदीवारी तक ही सिमट कर रह गया । वह कन्या रूप में पिता पर , पत्नी के रूप में पति और माँ के रूप में पुत्र पर आश्रित होती चली गयी । यद्यपि इस युग में कुछ नारियाँ अपवाद रूप में शक्ति सम्पन्न एवं स्वावलम्बी थीं ; फिर भी समाज सामान्य नारी को दृढ़ से दृढ़तर बन्धनों में जकड़ता ही चला गया । मध्यकाल में आकर शक्ति स्वरूपा नारी ‘ अबला ‘ बनकर रह गयी । मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में – 

  • “ अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी ,
  • आँचल में है दूध और आँखों में पानी । ” 

भक्ति काल में नारी जन – जीवन के लिए इतनी तिरस्कृत , क्षुद्र और उपेक्षित बन गयी थी कि कबीर , सूर , तुलसी जैसे महान् कवियों ने उसकी संवेदना और सहानुभूति में दो शब्द तक नहीं कहे । कबीर ने नारी को ‘ महाविकार ‘ , ‘ नागिन ‘ आदि कहकर उसकी घोर निन्दा की । तुलसी ने नारी को गँवार , शूद्र , पशु के समान ताड़ना का अधिकारी कहा ।

आधुनिक नारी- आधुनिक काल के आते – आते नारी चेतना का भाव उत्कृष्ट रूप में जाग्रत हुआ । युग – युग की दासता से पीड़ित नारी के प्रति एक व्यापक सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जाने लगा । बंगाल में राजा राममोहन राय और उत्तर भारत में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने नारी को पुरुषों के अनाचार की छाया से मुक्त करने को क्रान्ति का बिगुल बजाया । अनेक कवियों की वाणी भी इन दुःखी नारियों की सहानुभूति के लिए अवलोकनीय है । 

आधुनिक युग में नारी को विलासिनी और अनुचरी के स्थान पर देवी , माँ , सहचरी और प्रेयसी के गौरवपूर्ण पद प्राप्त हुए । नारियों ने सामाजिक , धार्मिक , राजनैतिक एवं साहित्यिक सभी क्षेत्रों में आगे बढ़कर कार्य किया । विजयलक्ष्मी पण्डित , कमला नेहरू , सुचेता कृपलानी , सरोजिनी नायडू , इन्दिरा गाँधी , सुभद्राकुमारी चौहान , महादेवी वर्मा आदि के नाम विशेष सम्मानपूर्ण हैं ।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत सरकार ने नारियों की स्थिति सुधारने के लिए अनेक प्रयत्न किये हैं । हिन्दू विवाह और कानून में सुधार करके उसने नारी और पुरुष को समान भूमि पर लाकर खड़ा कर दिया । दहेज विरोधी कानून बनाकर उसने नारी की स्थिति में और भी सुधार कर दिया । लेकिन सामाजिक एवं आर्थिक स्वतन्त्रता ने उसे भोगवाद की ओर प्रेरित किया है । आधुनिकता के मोह में पड़कर वह आज पतन की ओर जा रही है ।

उपसंहार – इस प्रकार उपर्युक्त वर्णन से हमें वैदिक काल से लेकर आज तक नारी के विविध रूपों और स्थितियों का आभास मिल जाता है । वैदिक काल की नारी ने शौर्य , त्याग , समर्पण , विश्वास एवं शक्ति आदि का आदर्श प्रस्तुत किया । पूर्व मध्यकाल की नारी ने इन्हीं गुणों का अनुसरण कर अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखा । उत्तर – मध्यकाल में अवश्य नारी की स्थिति दयनीय रही , परन्तु आधुनिक काल में उसने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर लिया । उपनिषद् , पुराण , स्मृति तथा सम्पूर्ण साहित्य में नारी की महत्ता अक्षुण्ण है । वैदिक युग में शिव की कल्पना ही ‘ अर्द्ध नारीश्वर ‘ रूप में की गयी ।

मनु ने प्राचीन भारतीय नारी के आदर्श एवं महान् रूप की व्यंजना की है । “ यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता अर्थात् जहाँ पर स्त्रियों का पूजन होता है वहाँ देवता निवास करते हैं । जहाँ स्त्रियों का अनादर होता है , वहाँ नियोजित होने वाली क्रियाएँ निष्फल हो जाती हैं । स्त्री अनेक कल्याण का भाजन है । वह पूजा के योग्य है । स्त्री घर की ज्योति है । स्त्री गृह की साक्षात् लक्ष्मी है । यद्यपि भोगवाद के आकर्षण में आधुनिक नारी पतन की ओर जा रही है , लेकिन भारत के जन – जीवन में यह परम्परा प्रतिष्ठित नहीं हो पायी है । आशा है भारतीय नारी का उत्थान भारतीय संस्कृति की परिधि में हो । वह पश्चिम की नारी का अनुकरण न करके अपनी मौलिकता का परिचय दे ।

Final Words: ऊपर स्टूडेंट हमने आप लोगों पर भारतीय समाज में नारी का क्या स्थान है या फिर नारी के बिना क्या जीवन है या फिर नारी भारतीय नारी पर एक निबंध लिखा (Bhartiya Nari Par Nibandh) था पर आप लोगों ने पढ़ा है वह आप लोगों की एग्जाम में अगर आ जाए तो आप मुझे पूरी उम्मीद है कि आप लोग जरूर से इसको लिख पाओगे अगर आप लोगों ने इसको सही तरीके से पढ़ा हो तो।

अगर आप लोगों को हमारे द्वारा दिया गया निबंध अगर पसंद आया हो तो आप अपने सभी सहपाठी को (Bhartiya Nari Par Nibandh) भी शेयर कर सकते हो और वह भी आपकी तरह निबंध को पढ़े और आने वाले एग्जाम समय कुछ अंक निश्चित जरूर कर पाएंगे।

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